कुंदरकी सीट पर बीजेपी की 'राजपूत-मुस्लिम' जोड़तोड़ क्या बनेगी पार्टी की जीत की चाबी?
उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले की कुंदरकी विधानसभा सीट, जो मुस्लिम बहुल क्षेत्र के रूप में जानी जाती है, इस समय भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के लिए एक बड़ा राजनीतिक चुनौती बनी हुई है। बीजेपी को यहां पिछले तीन दशकों से कोई बड़ी जीत नहीं मिली है, और अब वह इस सीट पर अपनी राजनीतिक धाक जमाने के लिए मुस्लिम वोटों को साधने की पूरी कोशिश कर रही है। कुंदरकी में करीब 64% मुस्लिम वोटर हैं, जिनमें सबसे ज्यादा संख्या मुस्लिम तुर्कों की है। बीजेपी ने इस सीट पर मुस्लिम राजपूत वोटों को अपने पक्ष में करने के लिए रणनीति बनाई है, ताकि मुस्लिम तुर्कों के वर्चस्व को तोड़ा जा सके।
कुंदरकी का ऐतिहासिक राजनीतिक परिपेक्ष्य
कुंदरकी सीट पर अब तक के 13 विधानसभा चुनावों में से नौ बार मुस्लिम तुर्क विधायक बने हैं, जबकि चार बार सहसपुर राज परिवार के सदस्य जीते हैं। इस क्षेत्र में मुस्लिम तुर्कों की राजनीतिक ताकत काफी मजबूत रही है। 2022 के चुनाव में सपा से जियाउर्हमान बर्क विधायक बने थे, जो बाद में लोकसभा सांसद चुनने के बाद इस्तीफा दे चुके थे। उनके इस्तीफे के कारण अब उपचुनाव हो रहे हैं।
मुस्लिम तुर्कों के खिलाफ बीजेपी की मुस्लिम राजपूत रणनीति
बीजेपी ने इस उपचुनाव में अपनी उम्मीदों को मुस्लिम राजपूत समुदाय से जोड़कर रखी है। इस बार बीजेपी ने ठाकुर रामवीर सिंह को उम्मीदवार बनाया है, जो खुद को मुस्लिम राजपूत समुदाय से होने का दावा करते हैं। बीजेपी ने इस समुदाय को अपना मुख्य वोट बैंक बनाने की कोशिश की है, और इसके लिए पार्टी ने मुस्लिम राजपूतों के बीच अपनी छवि मजबूत करने के लिए प्रचार अभियान तेज किया है।कुंदरकी में मुस्लिम राजपूतों की संख्या करीब 45,000 के आसपास बताई जाती है। बीजेपी के प्रदेश अल्पसंख्यक मोर्चे के अध्यक्ष, कुंवर बासित अली, जो खुद मुस्लिम राजपूत समुदाय से आते हैं, इस क्षेत्र में सक्रिय रूप से प्रचार कर रहे हैं। उनका कहना है कि सपा, बसपा और ओवैसी की पार्टी ने हमेशा मुस्लिम तुर्कों को ही प्रत्याशी बनाया है, लेकिन मुस्लिम राजपूतों की अनदेखी की है। बीजेपी इस स्थिति का फायदा उठाने के लिए मुस्लिम राजपूतों के बीच एकजुटता का माहौल बना रही है।
बीजेपी की मुस्लिम वोटों पर फोकस
कुंदरकी सीट पर मुस्लिम वोटों की संख्या अहम है, और बीजेपी इसे लेकर पूरी तरह से सजग है। मुस्लिम तुर्कों का एक बड़ा वोट बैंक इस क्षेत्र में है, लेकिन बीजेपी को एहसास है कि केवल हिंदू वोटों पर निर्भर होकर इस सीट पर जीत हासिल करना मुश्किल होगा। इसलिए पार्टी मुस्लिम राजपूत समुदाय को अपने पक्ष में लाने के लिए सभी जरूरी कदम उठा रही है।बीजेपी प्रत्याशी रामवीर सिंह, जो ठाकुर समुदाय से आते हैं, लगातार मुस्लिम राजपूत इलाकों में जाकर उनके साथ रिश्तों को प्रगाढ़ करने की कोशिश कर रहे हैं। रामवीर सिंह अपने प्रचार के दौरान मुस्लिम राजपूतों से जुड़ी सांस्कृतिक और जातीय बातें कर रहे हैं, ताकि उनका विश्वास जीता जा सके। इतना ही नहीं, वह मुस्लिम समुदाय के प्रति अपने सम्मान को दिखाने के लिए टोपी पहनते हुए भी नजर आ रहे हैं।
बीजेपी के अल्पसंख्यक मोर्चे का महत्व
कुंदरकी उपचुनाव में बीजेपी की सबसे बड़ी चुनौती मुस्लिम तुर्कों को अपने पक्ष में लाना है। पार्टी के अल्पसंख्यक मोर्चे के प्रदेश अध्यक्ष कुंवर बासित अली इस काम में अहम भूमिका निभा रहे हैं। बासित अली ने कई गांवों में मुस्लिम राजपूतों के बीच जाकर प्रचार किया है और उन्हें यह समझाने की कोशिश की है कि बीजेपी का उम्मीदवार रामवीर सिंह उनके लिए सबसे बेहतर विकल्प हो सकते हैं।उनका कहना है कि मुस्लिम राजपूतों की अनदेखी अब और नहीं सहन की जाएगी, और यह समय है जब दोनों समुदायों, हिंदू और मुस्लिम राजपूत, को एक साथ लाकर बीजेपी के पक्ष में एकजुट किया जाए। इस अभियान के दौरान, वह लगातार यह संदेश दे रहे हैं कि रामवीर सिंह और मुस्लिम राजपूतों का डीएनए एक ही है, दोनों ही ठाकुर समुदाय से आते हैं।
बीजेपी की "इस्लामिक अंदाज" में प्रचार रणनीति
रामवीर सिंह की चुनावी रणनीति में एक नई पहल देखने को मिल रही है। वह मुस्लिम इलाकों में चुनाव प्रचार करते समय इस्लामिक अंदाज में अपने चुनावी भाषणों को पेश कर रहे हैं। जैसे ही अजान की आवाज़ आती है, वे अपने भाषण को रोक देते हैं और अजान के खत्म होने का इंतजार करते हैं। इसके बाद वे फिर से अपने भाषण को शुरू करते हैं। इस कदम से वे मुस्लिम समुदाय में अपनी इमेज सुधारने की कोशिश कर रहे हैं और यह दर्शाने की कोशिश कर रहे हैं कि वे उनके धार्मिक विश्वासों का सम्मान करते हैं।
क्या बीजेपी कुंदरकी में जीत दर्ज कर पाएगी?
कुंदरकी सीट पर बीजेपी की जीत के लिए स्थिति जटिल है, लेकिन पार्टी की रणनीति को देखते हुए यह संभव हो सकता है। मुस्लिम तुर्कों के राजनीतिक वर्चस्व को चुनौती देना और मुस्लिम राजपूतों को अपनी ओर खींचना एक बड़ा जोखिम हो सकता है, लेकिन बीजेपी ने इसे अपना मुख्य लक्ष्य बना लिया है।यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या बीजेपी मुस्लिम राजपूतों के समर्थन से कुंदरकी में अपना खोया हुआ गौरव वापस हासिल कर पाएगी या नहीं। बेशक, कुंदरकी का उपचुनाव राज्य की राजनीति के लिए एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हो सकता है, और इसका असर आगामी विधानसभा चुनावों पर भी पड़ेगा।
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